Ashok Singh Satyaveer
पश्चिम की सभ्यता की हमेशा हम निंदा करते हैं और उसे भोगवादी सभ्यता कहकर उसका उपहास करते हैं । जरा ग़ौर करिए --
1• हम एक दूसरे की टांग खींच रहे हैं जबकि वे अपना काम कर रहे हैं।
2• हममें जातिवाद जैसे कोढ कूट-कूट कर भरे हैं जबकि उनमें व्यक्ति की योग्यता को महत्व दिया जाता है ।
3• एक व्यक्ति को चोट लग जाय या गिर जाय तो उसे हमसे पहले एक पश्चिमी व्यक्ति सहायता देने को तैयार होगा ।
4• हमने पूरे देश को कूड़ेदान बना रखा है और पश्चिम के देश का हर नागरिक हर स्थान के प्रति स्वच्छता की दृष्टि से जागरुक मिलेगा ।
5• हमारी सड़क कब बनती है और कब टूट-फूट जाती है कौन कह सकता है? परंतु पश्चिम की सड़क ईमानदारी से बनायी जाती है जो जल्दी नहीं टूटती है।
6• हम पानी जैसे प्राकृतिक अवदानों के प्रति लापरवाह हैं । यदि पानी की टोंटी लीक कर रही है तो उसे ठीक कराने और पानी बचाने के लिए एक पश्चिमी व्यक्ति बहुत आकुल दिखेगा। हमारे तो कहने ही क्या? अपनी सड़क और गाड़ी धोने में हजारों लीटर जल बर्बाद करदेते हैं ।
7• हमारे यहां दान का बड़ा महत्व है भीख मांगने वाले और प्रवचन से पैसा एकत्र करने वाले आध्यात्मिक कहलाते हैं और अनाज और पैसा पैदा करने और देने वाला भौतिक कहलाता है । यहाँ दूसरों से लेना, मांगना आध्यात्मिक कार्य है और अपने श्रम से कमाना और उत्पादन करना भौतिक कार्य है। इसीलिए पश्चिमी देशों से कर्ज लेने वाले, अस्त्र-शस्त्र लेने वाले, सहायता की भीख मांगने वाले हम अभी भी विश्वगुरू हैं आध्यात्मिक हैं जबकि हमारी मदद करने वाले, लाखों भारतवंशियों को रोजगार देने वाले पश्चिमी देश भौतिक हैं ।
शेष फिर ...... [ translated from the book - "And......India is Great" ]
Ashok Singh Satyaveer
Ashok Singh Satyaveer
Friday, July 15, 2016
** And...... India Is Great **
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