ज़िन्दगी एक राज़ है अन्दाज़ निराले,
है बदलती रुख इस कदर,
कब, कौन सँभाले?
जब जोर नहीं चल सके
इस पर कि ज़रा सा,
ख़ुद को करो पूरी तरह से इसके हवाले।।१।।
तुम ज़िन्दगी से हारकर,
न होना कभी नाराज़,
मौसम सरीखी जिन्दगी,
संग बदलकर अन्दाज़।
मग़रूर रहो या कि हो-मशहूर ओ ज़नाब;
सीखो मगर अब तुम,
करो जिससे कि ख़ुद पर नाज़।।२।।
हिम्मत से अग़र डट गये,
रास्ते पे शान से,
बदलेगी फ़िज़ा दोस्त मेरे मुस्कुराओगे।
मुस्किल ख़तम हो जायेगी मसले करोगे हल;
किस्मत बदल जायेगी,
औ मंजिल को पाओगे।।३।।
मज़बूत दिल से हौसले-
रख़, चलो 'सत्यवीर',
कुदरत ने सभी को,
बना भेजा यहाँ अमीर।
मस्ती रहे कायम हमेशा,
होश में रहो;
बेख़ौफ हो अब तो चलाओ दोस्त मेरे तीर।।४।।
अशोक सिंह सत्यवीर
[गज़ल संग्रह- मछली पर रेत और रेत में गुल]
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