रोग में आनंद मिलता, रक्खा क्या इलाज में?
मूल की अब क्या जरूरत, जब फायदा है ब्याज में?1॥
चल रही जब तक, कि हलचल इश्क की, दौर वह अनमोल, उसमें डूब।
फिर न जाने कब, मिले अहसास वह, धड़कनों को पढ़, न उससे ऊब॥2॥
'सत्यवीर' इलाज- खुद में इश्क है, तजुर्बों का ताज, खुद में इश्क है।
कर रहा अब भी, वफा का इंतजार, इश्क का मोहताज, खुद में इश्क है॥3॥
अशोक सिंह 'सत्यवीर'
[गजल संग्रह : *मछली पर रेत और रेत में गुल*]
No comments:
Post a Comment