Ashok Singh Satyaveer

Thursday, June 9, 2016

गाँव - गाँव में रौनक लायी भोर


मुस्काये किसलयदल, गगन विभोर,
गाँव-गाँव में रौनक लायी भोर।।१।।

सूरज उगा और नुक्कड़ पर,
सूरज ने दृकान लगायी।
चाय, समोसे और जलेबी,
की प्यारी सी खुशबू आयी।
मुर्गा कहता "उठ हे बिरजू, अब मत खीश निपोर।"
गाँव-गाँव में रौनक लायी भोर।।२।।

शंकर मास्टर नहा रहे हैं,
जाना है विद्यालय।
श्यामू पाँड़े पत्रा बाँचें,
मिश्रा चले शिवालय।
मुँह में ले दातून रामधन, खाना रहा अगोर।
गाँव गाँव में रौनक लायी भोर।।३।।

जैसे बिल्ली खिसियाने पर,
खंभा नोचे जाय।
दूध न पाकर करे पिटायी,
लौटू अपनी गाय।
प्रेमू लेकर छोटी मौनी, महुआ रहा बटोर।
गाँव-गाँव में रौनक लायी भोर।।४।।

भुल्लुर काका जोर-जोर से,
गाँवैं दोहा औ चौपाई।
राधा बूआ द्वार बुहारें,
औ नातिन की करें बड़ाई।
छब्बू इक्का ठीक कर रहे, घोड़ा करे बरोर।
गाँव गाँव में रौनक लायी भोर।।५।।

खेतों में हलचल उभरी है,
आलू की हो रही खुदायी।
औ गन्ने को काट-काट कर,
करें आदमी तेज गँड़ाई।
ट्रैक्टर-ट्राली ले छोटकन्नू,
चले खेत की ओर।
गाँव-गाँव में रौनक लायी भोर।।६।।

मस्जिद में अजान इत गूँजे,
उत मंदिर में भजन बजे।
राम-रहीम बसें हर दिल में,
कौन अभागा ना समझे?
पत्ते हिलते आम-नीम के, अनुचित देर बहोर।
गाँव गाँव में रौनक लायी भोर।।७।।

'सत्यवीर' दुनिया गाँवों की,
डूबी खुद के प्यार में ।
गौर करो तो खो जाओगे,
गाँवों के संसार में ।
भारत का हर गाँव अनूठा, कहे आज पुरजोर।
गाँव-गाँव में रौनक लायी भोर॥8॥

अशोक सिंह 'सत्यवीर'
[पुस्तक-कुछ सौरभ बिखरा बिखरा सा]

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