खुद-बखुद जो घट रहा, है इश्क वह एहसास।
सुलझने में क्या रखा है? उलझना ही खास॥1॥
इश्क होना पाक है, यह खुद में इक तमीज़ है।
देखकर सूरत कहें बेताब वे, करोड़ों में 'एक' किन्तु अज़ीज है॥2॥
हजारों अच्छे करम जब बीतते, तब कहीं से इश्क की चलती बयार।
पाक करती रूह को, देती शिकस्त, धड़कनें थमतीं झरे दिल में फुहार॥3॥
सब रवायत और मजहब टूटते, रस्म बेगानी बने इस इश्क में ।
किन्तु रिश्ते, रस्म, मजहब, से बड़ी चीज़ कुछ मिलती हमें इस इश्क में ॥3॥
'सत्यवीर' खुदा सँभाले इश्क को, करोड़ों में एक को मिलता है इश्क।
खुशनशीबी से इबादत पाक हो, जब किसी की बाग में खिलता है इश्क॥5॥
अशोक सिंह 'सत्यवीर'
(गजल संग्रह -'मछली पर रेत और रेत में गुल' page-29)
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