Ashok Singh Satyaveer

Thursday, June 9, 2016

** बाल प्रकृति में भरी मिठास **

अशोक सिँह
भरा हृदय में यह विश्वास,
बालप्रकृति में भरी मिठास।
मधुर दृश्य में हम खो जाते,
जब बच्चे होते हैं पास॥1॥

पृथक-पृथक भूमिका चयन कर,
बच्चे नित करते हैं अभिनय।
अपनी दुनिया में खो जाते,
सुधि न उन्हें, ऐसे हों तन्मय॥2॥

कभी-कभी गुड़िया की शादी,
कभी खिलौने लेकर खेलें।
आँख-मिचौली कभी खेलते,
यह सुख दें कब जग की मेले?3॥

कभी-कभी वे मात-पिता सम,
लघु कालिक मर्यादा धारें ।
हो प्रफुल्ल हम सब यह देखें,
पल में हों, दु:ख दूर हमारे॥4॥

कभी-कभी बंदूक माँग लें,
कभी-कभी लेकर पिचकारी।
धूम मचाते, मुग्ध भाव में-
देखें पिता और महतारी॥5॥

कहें "सुनाओ एक कहानी,
परीकथा या राजा-रानी"।
देवदूत आकर तब देखे,
बच्चों की प्यारी मनमानी॥6॥

"सत्यवीर" अब 'सुधि' में बाकी,
हैं उन बचपन की सब यादें ।
जब गुस्सा होकर करते हम,
मम्मी-पापा से फरियादें ॥7॥

वो प्यारी सुगंधि अब लौटी,
जब बेटी फिर से अब मचली।
जिद अब जिद की याद दिलाऐ,
मेरी सब कड़वाहट पिघली॥8॥

अशोक सिंह सत्यवीर [पुस्तक -¤कुछ सौरभ विखरा-विखरा सा¤ पृष्ठ संख्या-13]

No comments:

Post a Comment