बार बार इक प्रश्न सुनें हम, क्या है जीवन?
और हृदय में यही गुनें हम, क्या है जीवन?।।१।।
जन्म लिया, फिर छोड़ दिया तन, क्या है जीवन?
दूर हुए या जोड़ लिया मन,
क्या है जीवन?।।2।।
दु:ख अपनायें, सुखहित धायें, क्या है जीवन?
हारें या खुद को समझायें, क्या है जीवन?।।3।।
फिक्र छोड़ दें, हृदय जोड़ दें, क्या है जीवन?
कटु रिश्तों को सहज तोड़ दें, क्या है जीवन?।।4।।
परम्पराऐं सहज निभाऐं,
क्या है जीवन?
या अपना आदर्श बनाऐं,
क्या है जीवन?।।5।।
अब मन में निष्कर्ष आ रहा, क्या है जीवन?
गलत किया जो त्रास नित सहा, क्या है जीवन?6।।
सच में हृदय पुकार उठाऐ, क्या है जीवन?
उसी हेतु सब नियम बनाए,
क्या है जीवन?।।7।।
आकुल है इक भाव हृदय में, कोशिश करे व्यक्त होने की।
उसी भाव को शब्द दे सके,
और जी सके, वह है जीवन।।8।।
सहज बोध दे, मधुरिम चेष्टा, और चैन जब-जब पाये मन।
तब-तब समझो देता दस्तक,
निकट मनुज के उसका जीवन॥9।।
'सत्यवीर' आकंठ भरा है, रसवाही मधुरिम नित जीवन।
किससे करें शिकायत मुझ पर, स्वयँ आज है अर्पित जीवन।।10।।
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