Ashok Singh Satyaveer

Thursday, June 9, 2016

** सहज हैं सब चढ़ाव-उतार **

ज़िन्दगी का है यही एहसान
बदलने का लय सिखाती है।
बदलता मौसम यही कहता
जड़ बनी गति जंग खाती है।।1।।

जहाँ तक है बात छल की तो,
वो हमारे हृदय में बैठा।
उठ रहा जो प्रकृति का आवेग,
अहं माने नहीं, बस ऐंठा।।2।।

बदलते सब रंग लो स्वीकार,
जिन्दगी से जता दो आभार।
'सत्यवीर' सुबुद्धि कहलाती,
स्वप्न हो जाते सभी साकार।।3।।

प्रेरणा देती बदलती जिंदगी,
जड़ बनो मत, औ न मानो हार।
'सत्यवीर' कैसा विचित्र प्रहार,
सहज हैं ये सब चढ़ाव-उतार।।4।।

>अशोक सिंह सत्यवीर
[पुस्तक - यह भी जग का ही स्वर है, Page-63]

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