🌿काँटों पर तू चलना सीख॥1॥🌿
🌿पुष्प खिलेंगे तभी चलेंगे।
नियति रचेगी तभी मिलेंगे।
कोई तो बतलाए,होगा कब-
प्रभात औ पुष्प खिलेंगे।🌿
🌿भीरु-मना ही ऐसा कहते,
और माँगते भीख।
काँटों पर तू चलना सीख॥2॥🌿
🌿नित नवीन संकल्प सृजित कर,
तू क्यों करता उनको भंग?
मन में कल्पित चिंता लेकर,
नहीं कभी चढ़ सकता श्रृँग।🌿
🌿निर्णय एक सोचकर ले तू ,
बढ़ जा उस पर सदा अभीक।
काँटों पर तू चलना सीख॥3॥🌿
🌿जग क्या कहता? मन क्या कहता?
क्षमता कितनी! चिंतित रहता।
इसी जगत में कितने हँसते,
पर, तू किस सागर में बहता?🌿
🌿व्यर्थ न जाने दे इस पल को,
अब तो कर जा तू कुछ ठीक।
काँटों पर तू चलना सीख॥4॥🌿
🌿उर की अभिलाषा पहचानो,
और समय की महिमा जानो।
एक श्रेय-पथ चुनो, और-
मानव से सम्भव सब, मानो।🌿
🌿छोड़ पुरातन गाथाऐं,
रच कालजयी इक लीक।
काँटों पर तू चलना सीख॥5॥🌿
🌱रचयिता- 🌱अशोक सिंह 'सत्यवीर'🌱
{मूल कविता संग्रह- 🌿चैतन्य तृण🌿}
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