🍁दिल में जब उभरे सूनापन,
औ फूलों में काँटें छाऐं।
एक झलक पाकर दिलवर की,
आँखों में उभरी आशाएं ॥1॥🍁
🍁खुदा आज जब खुद से आकर,
देता दरवाजे पर दस्तक़;
तब खुद की कमज़ोरी से डर,
रश्मों पर आरोप लगाऐं॥2॥🍁
🍁ऊँच-नीच खुद में रखकरके,
परेशान होते हैं हरदम;
पर जब भेद खतम से लगते,
तब असमंजश ख़ुद में पाऐं॥3॥🍁
🍁समझदार कहते हैं ख़ुद को,
पर न कहें खुलकर कुछ भी;
ज़ज़्बातों से ज़ज़्बातों को,
हलचल दे गायब हो जाऐं॥4॥🍁
🍁शिकायतें ही भरीं मगज़ में,
जबकि बहुत प्यारे हैं वो;
जिन घावों से खुद तड़पे हैं,
आज वही मुझको दे जाऐं॥5॥🍁
🍁'सत्यवीर' वे मीठे इतने,
कैसे करें शिकायत हम?
खुदा करे गम हम पा जाऐं,
वो मेरी सब खुशियाँ पाऐं॥6॥🍁
अशोक सिंह 🍀सत्यवीर 🍀
{गजल संग्रह -'🌹मछली पर रेत और रेत में गुल'🌹 से}
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