परमात्मा की बारम्बार अन्तस्प्रेरणा के फलस्वरूप एक दीर्घकालिक गहरी साधना की देन है **यथार्थोपनिषद**॥ प्रथम बार संस्कृत के बजाए हिन्दी में अवतरित हुआ कोई उपनिषद ----
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🌱अन्तस्तल का स्रोत प्रस्फुटित,
अविकारी सिद्धाँत बहे।
प्रियतम सद्गुरु की अनुकम्पा ,
से यथार्थ आकार गहे॥🌱
🌱मरुतम जगती की मादक गति,
किन्तु फूटते कुछ कासार।
यथारूप सब भेद दृष्टिगत,
शून्य घोष का मोद अपार॥🌱
🌱उत्स स्वयं नित प्रकट भूमि पर,
किस समास पर उर इतराये?
'सत्यवीर' नि:शब्द नाद में,
शून्य मोद अब गरिमा ,पाये॥🌱
(प्रथम अनुवाक्, प्रथमोऽध्याय, यथार्थोपनिषद)
अशोक सिंह 🌷सत्यवीर'🌷
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