Ashok Singh Satyaveer

Thursday, May 19, 2016

๐ŸŒฑ**เคธเคนเคœ เค—เคคि เคฎें เค…เคตเคฐोเคง เคนुเค† **๐ŸŒฑ

🌺* सहज गति में अवरोध हुआ *🌺

उछल पड़ीं उत्ताल तरंगें, अनचाहा प्रतिरोध हुआ।
सहज गति में अवरोध हुआ॥1॥

सागर का तज वृहद्‌ किनारा,
खिंचे लहर के आकर्षण में ।
तट से पृथक दूर तक आये,
उत्सुकता बढ़ती क्षण- क्षण में ।
किन्तु, मिला कुछ नहीं भँवर में, तट छूटा, त्रुटि- बोध हुआ॥2॥

आभासी सुख प्राप्ति हेतु,
आधार छोड़, हम फँसे भँवर में ।
शक्ति शिथिल, निस्तेज बदन,
नौका जर्जर, जीते हम डर में ।
अपना सच्चा साथी तट है, ऐसा हमें प्रबोध हुआ॥3॥

लहर में जाना ठीक, मगर-
निकलने की आदत भी हो।
लहर में आकर्षण इतना,
लहर में फँसने का भय है।
रह तटस्थ मूल्याँकन कर तू, मन का यह अनुरोध हुआ॥4॥

रचयिता: अशोक सिंह 'सत्यवीर'
(कोवलम बीच तिरुअनंतपुरम, अप्रैल 2007)

{ गीत संग्रह 'स्वर लहरी यह नयी- नयी है' से }

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