यदि अपने ठंडे दिमाग से,
सोचें तो सच दिखता है।
सच्चाई पर पहरे लगते,
झूठ हमेशा बिकता है।।1।।
बात कहीं से शुरू हो कि,
हो किसी बिन्दु पर बात खतम।
मर्यादा को ढाल बनाकर,
दिल की बात दबाते हम।।2।।
घर, समाज की मर्यादा पर,
इच्छाऐं करते बलिदान।
बातें कितनी ऊँची करते,
किन्तु करें खुद का अपमान॥3।।
छोटी सी जो मिली जिन्दगी,
उस पर कितना भार रखा।
रस्में तो निभ गयीं किन्तु,
क्या कभी हृदय को भी परखा?4।।
जिस समाज की परंपरा ने,
जीवन को खिलने न दिया।
मिले हृदय, इच्छा मुस्कायी,
सच में पर मिलने न दिया।।5।।
उसको मिली चुनौती जब से,
तब जन को सम्मान मिला।
हिचक तोड़कर कदम बढ़ाया,
तब खुद का अभिमान खिला।।6।।
जितने जन आज्ञाकारी थे,
उनमें कुछ बदलाव न था।
मात, पिता, गुरु, कुल की चिन्ता थी,
पर सच्चा भाव न था।।7।।
मात पिता का कष्ट सोचने ,
वालों में थी क्रान्ति कहाँ?
उनका ऋण उतारने की बस,
व्याप्त रही इक भ्रान्ति वहाँ।।8।।
राम,कृष्ण, गौतम, नानक,
ज्योतिबा फुले ने कथा रची।
अम्बेदकर, भगत सिंह,
बिबेकानंद में व्यथा बची।।9।।
जिनके कारण आज साथ हमने,
जो दिल से बात किया।
प्यार उभर आया जो दिल में,
और हृदय में साथ दिया।।10।।
जिन लोगों ने समानता के,
लिए आत्म बलिदान किया।
मात-पिता थे दु:खी सभी के,
किन्तु देश ने मान दिया।।11।।
यदि कुरीति का करें समर्थन,
मात-पिता, परिवार, समाज।
उनके मन की बात तोड़कर,
उठ जाये यदि जन-मन आज।।12।।
तो परिवर्तन की शुभ धारा,
आगे बढ़ती जायेगी।
भारत माँ की संतानों में,
नूतन गरिमा आयेगी॥13॥
'सत्यवीर' अब हृदय खोलकर,
प्यार भरा व्यवहार करो।
स्वाभिमान की शुभ रक्षा हित,
विद्रोही संसार भरो ।।14।।
[पुस्तक- बात अभी बाकी है]